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भारत की शिक्षा में भाषा नीति विभाषा सूत्र के रूप में जानी जाती है त्रिभाषा सूत्र कोठारी कमीशन की अध्यक्षता में 1968 में लागू हुआ। इसमें मातृभाषा क्षेत्रीय भाषा, क्षेत्र की राजभाषा / सह- राजभाषा, अंग्रेजी (विदेशी भाषा) सम्मिलित है।
1) सही वर्तनी
2) संयुक्ताक्षर लिखना
3) लेख लिखना
4) वाक्यों में कठिन शब्दों का प्रयोग करना
* लेखन कौशल का उच्चतम स्तर है ‘लेख लिखना’
* बालक भाषा के दो रूपों का प्रयोग करता है - मौखिक और लिखित।
* लेखन कौशल - सामान्य रुप से लिखकर विचारों की अभिव्यक्ति करना लेखन कौशल कहा जाता है।
* छात्रो में लेखन के कौशल को विकसित करने में मदद उन्ही पाठयक्रम से मिलती है जिसमे विचार तर्कसंगत ढंग से संगठित हैं तथा जो पढ़ने में दिलचस्प और अधिक सटीक हो।
1) मूर्त विवरणात्मक और विश्लेष्णात्मक
2) अमूर्त विवरणात्मक और विश्लेष्णात्मक
3) मूर्त विवरणात्मक और अवधारणात्मक
4) अमूर्त अवधारणात्मक और अवधारणात्मक
* भाषा शिक्षक के रूप में पाठ्य सामग्री के ‘मूर्त विवरणात्मक और विश्लेष्णात्मक’ स्वरूप को अपनाना चाहिए।
* एक भाषा-शिक्षक के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षक बच्चों को भाषा-प्रयोग के अवसर उपलब्ध कराए, ताकि बच्चे की भाषा सम्बन्धी पकड़ मजबूत हो सके।
भाषा शिक्षक के गुण -
* विषय का विस्तृत ज्ञान-विषय में रुचि और लगन का होना भी अनिवार्य है
* शिक्षार्थी की क्षमताओं और योग्यताओं का ज्ञान
* सरल एवं सुस्पष्ट भाषा
1) निजी से व्यक्तिगत
2) निजी से समाजीकृत
3) आत्मकेंद्रित से सामाजिक
4) सामाजिक से आत्मकेंद्रित
* पियाजे के अनुसार भाषा का विकास आत्मकेंद्रित से सामाजिक तक होता है।
* पियाजे - बच्चों में पहले विचार करने की क्षमता विकसित होती है फिर भाषा प्रयोग आता है।
* पियाजे का मानना है कि बच्चे का विकास तब होता है जब वह अपने परिवेश के साथ बातचीत करता है और उनसे सीखता है। पियाजे ने कहा कि विकास तब होता है जब एक बच्चा स्वयं अनुभव करता है और अपने अनुभव से वह सही और गलत की अवधारणा को सीखता है।
1) आत्मकेंद्रित भाषण
2) सामाजिक भाषण
3) व्यक्तिगत भाषण
4) निजी भाषण
कक्षा में चर्चा के दौरान, कक्षा V की एक विद्यार्थी 'भ्रष्टाचार के कारणों' पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इस दौरान न तो वह दूसरों के विचारों से सहमति प्रकट कर रही है और न ही वह दूसरे के नज़रिए से विषय-वस्तु को देखने की कोशिश कर रही है। पियाजे के अनुसार वह आत्मकेंद्रित भाषण में शामिल है।
1) समृद्ध लिखित सामग्री प्रदान करें और विद्यार्थियों को विभिन्न संरचनाओं की खोज करने दें।
2) विद्यार्थियों को अधिक से अधिक व्याकरणिक अभ्यास करने के लिए दें।
3) विद्यार्थियों को पुस्तक से संरचनाओं को याद करने के लिए कहें।
4) विद्यार्थियों को विभिन्न संरचनाओं पर कोई एक प्रदत्त कार्य दें।
* जीन पियाजे के सिद्धांत के अनुसार, विद्यार्थियों को व्याकरणिक संरचनाओं को समझाने के लिए, भाषा शिक्षक को समृद्ध लिखित सामग्री प्रदान करें और विद्यार्थियों को विभिन्न संरचनाओं की खोज करने दें।
* पियाजे के अनुसार, भाषा अन्य संज्ञानात्मक तंत्रों की भांति परिवेश के साथ अतःक्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है।
1. जिस कक्षा में अध्यापक निर्णय लेते हैं और आत्मनिर्भर होते हैं।
2. जिसमें अधिगम का समग्र उत्तरदायित्व अध्यापक पर होता है।
3. जिसमें विद्यार्थियों की बहुत कम संख्या पर ध्यान दिया जाता है और अधिकांश विद्यार्थियों की अनदेखी की जाती है।
4. जिसमें शिक्षार्थियों के पूर्व ज्ञान और अनुभवों को शामिल किया जाता है।
जिसमें शिक्षार्थियों के पूर्व ज्ञान और अनुभवों को शामिल किया जाता है वह शिक्षार्थी केंद्रित कक्षा होती है।
बाल केंद्रित कक्षा में बच्चे विभिन्न तरह की गतिविधियों में क्रियाशील होकर जुड़े रहते हैं। अध्यापक बच्चों के लिए अधिगम की ऐसी स्थितियां बनाते हैं जहाँ बच्चों को खुद से अवलोकन करने, खोजबीन करने, प्रश्न करने, अनुभवों का निर्माण करने और विभिन्न अवधारणाओं के प्रति अपनी समझ बनाने के अवसर मिलते हैं।
1. इसमें शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखने के लिए अध्यापक व्यावहारिक युक्तियों को अपनाते हैं।
2. इसमें विद्यालयी शिक्षा के सभी घटक शामिल हैं, जैसे कि बुनियादी संरचना, आर्थिक संसाधन, विद्यालय समुदायों का सृजन।
3. इसमें पारंपरिक कक्षा में नवीन तकनीकी से जुड़ी विधियों को प्रयोग में लाना शामिल है।
4. इसमें सामाजिक और अंतः क्रियात्मक दृष्टिकोण को संलग्न करते हुए भाषा शिक्षण का रूपांतरित दृष्टिकोण शामिल है।
भाषा शिक्षा में ‘समावेशन' से आशय है इसमें सामाजिक और अंतः क्रियात्मक दृष्टिकोण को संलग्न करते हुए भाषा शिक्षण का रूपांतरित दृष्टिकोण शामिल है।
समावेशी शिक्षा उन सभी छात्रों को शिक्षित करने की एक विधि है जो स्कूल प्रणाली में उपेक्षित होने की आशंका में हैं। यह सभी शिक्षार्थियों से अपेक्षा करता है कि वे सामान्य शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच बनाकर एक साथ सीखें। माता-पिता, समुदाय, शिक्षक, प्रशासक और नीति निर्माता इस प्रणाली के महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। इन सभी व्यक्तियों को बच्चों की विभिन्न आवश्यकताओं के लिए सहायक होना चाहिए।
1. सचेत, प्रायोगिक रूप से सिद्ध विचार ।
2. मूल्याँकन और समस्या समाधान के वे पहलू जो नवीन अन्तः दृष्टि तथा समझ प्रदान करते हैं।
3. इसमें सामान्य संज्ञानात्मक योग्यताएँ, कंठस्थीकरण और दोहराव आधारित अभ्यास शामिल है।
4. यह इस तरह की समझ है कि दिन-प्रतिदिन के निर्णय किस तरह से क्रियान्वयन को प्रभावित करते हैं।
'भाषा अध्यापक-शिक्षा' में विमर्श, चिन्तन-मनन से तात्पर्य है मूल्याँकन और समस्या समाधान के वे पहलू जो नवीन अन्तः दृष्टि तथा समझ प्रदान करते हैं।
1) पाठ्य सामग्री आधारित व्याकरण के पाठ व्याकरण के बिन्दुओं के सभी प्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं।
2) पाठ्य सामग्री आधारित पाठ निर्देशित खोजबीन उपागम का अनुसरण करते हैं जिसमें विद्यार्थी स्वयं भाषा के बारे में जानकारी
प्राप्त करते हैं।
3) पाठ्य सामग्री आधारित व्याकरण पाठों की योजना बनाते समय अध्यापकों को स्वयं अपनी ओर से भी सामग्री सृजित करनी
चाहिए।
4) इन पाठों में सुव्यक्त व्याकरण शिक्षण होता है और शिक्षार्थियों के लिए नियमों का वर्णन भी शामिल होता है।
पाठ्य सामग्री आधारित व्याकरण पाठों के संदर्भ में इन पाठों में सुव्यक्त व्याकरण शिक्षण होता है और शिक्षार्थियों के लिए नियमों का वर्णन भी शामिल होता है सही नहीं है।
भाषा-प्रयोग में व्याकरण का ध्यान रखना व्याकरण का मुख्य उद्देश्य है। व्याकरण-शिक्षा से मातृभाषा के प्रयोग-लिखने, बोलने में शुद्धता आती है। मातृभाषा में व्याकरण के उपयोग से शुद्ध एवं स्पष्ट व्यवहार आता है।
व्याकरण -
भाषा का शुद्ध रूप पहचानने में छात्रों को सक्षम एवं समर्थ बनाना ही व्याकरण का उद्देश्य है।
छात्रों को विविध ध्वनियों व उनके उच्चारण के नियमों का ज्ञान देना।
छात्रों को भाषा के नियमों से परिचित कराना।
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