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निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए । उच्चकोटि के साहस के लिए कर्तव्यपरायण बनना परमावश्यक है । कर्तव्यपरायण व्यक्ति के ह्रदय मे यह बात अवश्य होनी चाहिए कि जो कुछ मैंने किया, वह केवल अपना कर्तव्य किया । मारवाड़ के मौरूदा गाँव का जमींदार बुदधन सिंह किसी झगड़े के कारण स्वदेश छोड़कर जयपुर चला गया और वहीं बस गया। थोड़े ही दिनों बाद मराठों ने मारवाड़ पर आक्रमण किया । यद्यपि बुदधन मारवाड़ को बिल्कुल ही छोड़ चुका था तथापि शत्रुओं के आक्रमण का समाचार पाकर और मातृभूमि को संकट मे पड़ा हुआ जानकर उसका रक्त उबल पड़ा । स्वदेश भक्ति ने उसे बतला दिया, ‘यह समय ऐसा नहीं है कि तू अपने घरेलू झगड़ो को याद करे । उठ, और अपना कर्तव्य पालन कर ।’ इस विचार ने उसे इतना मतवाला कर दिया कि वह अपने एक सौ पचास साथियों को लेकर, बिना किसी से पूछे जयपुर से तुरंत चल पड़ा | देश भर मे मरहटे फैले हुए थे । उनके बीच मे होकर निकल जाना कठिन काम था, परंतु बुदधान के साहस के सामने उस कठिनता को मस्तक झुकाना पड़ा । एक दिन अपने मुट्ठी भर साथियों को लिये वह मरहठों के बीच से होकर निकल ही गया । इस तरह निकल जाने से उसके बहुत से साथी रणक्षेत्र रूपी अग्नि-कुंड में आहुत हो गये । जीवित बचे हुओं में बुदधन सिंह भी था । यह समय पर अपने देश और राजा की सेवा के लिए पहुँच गया । इस घटना को हुए बहुत दिन हो गये, परंतु आज तक वीर जाति राजपूत अपने कर्तव्यपरायण वीर बुदधन की वीरता को सम्मानपूर्वक याद करते हैं । राजपूत महिलाएँ आज भी बुदधन और उसके वीर साथियों की वीरता के गीत गाती हैं । मौरूदा मे आज भी एक स्तम्भ उन वीरों की यादगार में खड़ा हुआ, इतिहासवेत्ताओं के ह्रदय को उत्साहित करता है ।
'परमावश्यक' शब्द में संधि है।
परमावश्यक शब्द में दीर्घ संधि है | परमावश्यक – परम + आवश्यक = परमावश्यक जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के पश्चात क्रमश: ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ स्वर आए तो दोनों मिलकर दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ हो जाते है | जैसे – विधालय, देवालय, गिरीश आदि
'मराठो' शब्द मे कौन सी संज्ञा है।
मराठो शब्द में जाति वाचक संज्ञा है।जब कोई संज्ञा शब्द एक ही प्रकार के सभी प्राणियों वस्तुओ आदि का बोध कराता है।जो इससे उस प्राणी या वस्तु की पूरी जाति का बोध होता है।इसलिए ऐसे संज्ञा शब्द को जातिवाचक संज्ञा कहते है।जैसे – नदियाँ, पशुओं, पक्षियों आदि।
माधुरी पढ़ते समय कभी-कभी वाक्यों, शब्दों की पुनरावृत्ति करती है। इसका यह भाषायी व्यवहार दर्शाता है कि-
माधुरी पढ़ते समय कभी-कभी वाक्यों, शब्दों की पुनरावृत्ति करती है। इसका यह भाषायी व्यवहार दर्शाता है माधुरी पढ़ते समय ज्यादा समय लेती है। भाषा -प्रवाह को कुशल बनाने में बोलना भाषा विकास की प्रक्रिया का वह साधन है जिसके माध्यम से बालक अपने भाषा प्रवाह में प्रवीणता तथा कुशलता का विकास कर सकता है। इसके माध्यम से उसके भाषा के विकास में कुशलता आती है तथा साथ ही भाषा पर उसकी पकड़ और मज़बूत होती जाती है।
भाषा सीखने के लिए तैयारी की अवस्था को किस नाम से जाना जाता है?
प्रारम्भिक अवस्था को भाषा सीखने के लिए तैयारी की अवस्था कहा जा सकता है। इस अवस्था से गुज़रने के बाद बालकों में वास्तविक भाषा विकास का कार्य प्रारम्भ होता है। जिसे भाषा विकास की वास्तविक अवस्था कहा जा सकता है।
प्राथमिक स्तर पर भाषा की पाठ्य-पुस्तकों में किस तरह की रचनाओं को स्थान दिया जाना चाहिए ?
प्राथमिक स्तर पर भाषा की पाठ्य-पुस्तकों में ऐसी रचनाएँ जो बच्चों के परिवेश से जुड़ी हों और जिनमें भाषा की अलग-अलग छटाएँ हों को स्थान दिया जाना चाहिए । रचनाएँ ऐसी हो जो शैक्षिक उद्धेश्यों के अनुरूप, भाषा पर अधिकार करने में सहायक, रोचकता, विषयों की विविधता, स्तरानुकूलता, क्रमबद्धता अन्य विषयों के साथ सह-सम्बद्धता, राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन में सहायक हो।
भाषा तब सबसे सहज और प्रभावी रूप से सीखी जाती है। जब
भाषा तब सबसे सहज और प्रभावी रूप से सीखी जाती है जब भाषा-प्रयोग की दक्षता प्रमुख उद्देश्य हो। इस तरह भाषा के मौखिक एवं लिखित रूपों से सम्बन्धित विभिन्न कौशलों के अर्जन तथा विकास में धीरे-धीरे उसके कदम बढ़ते जाते हैं और वह भाषा को विचार विनिमय का साधन ही नहीं बल्कि ज्ञान प्राप्त करने तथा शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम बनाकर सर्वांगीण विकास करने में पूरी तरह समर्थ हो जाता है।
भाषा शिक्षक का विशेष अनिवार्य गुण है
शुद्ध उच्चारण भाषा शिक्षक का विशेष एवं अनिवार्य गुण है। अगर बोलते समय शब्द का शुद्ध उच्चारण नहीं किया गया,या वाक्य व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध है ।
निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए । सोनजुही में आज एक पीली कली गली है | उसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कन्धे पर कूदकर मुझे चौंका देता था | तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राणी की खोज है | परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो |अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौए एक गमले के चारों ओर चोंचों से चुवा-छुवौवल – जैसा खेल खेल रहे हैं । यह कागभुशुण्डी भी विचित्र पक्षी है – एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित । हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के | उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है | इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधु सन्देश इनके कर्कश स्वर ही में दे देना पड़ता है | दूसरी ओर हम कौआ और कांव-कॉव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं | मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी क्योंकि गमले और दीवार की सन्धि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी द्रष्टि रुक गयी | निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है, जो सम्भवत: घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौए जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं ।
छोटा जीव किसके नीचे छिपकर बैठता था ?
छोटा जीव “लता” की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही वह कूदकर मेरे कन्धे पर बैठकर मुझे चौका देता था लता का पर्याय शब्द “बेल” होता है ।
कागभुशुणडी कौन थे।
कागभुशुण्डी(कौआ) एक विचित्र पक्षी था एक समादरित, अनादरित, अति सम्मानित अति अवमानित |कागभुशुण्डी का वर्णन रामचरित मानस में किया गया है |
'समादरित' शब्द में कौन सी सन्धि है?
समादरित शब्द में दीर्घ सन्धि है।समादरित शब्द का विच्छेद है।सम + आदरित = समादरित।जहाँ पर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ के बाद समान स्वर आने पर दीर्घ सन्धि होती है।
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