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CTET 2020 Hindi Test - 28
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CTET 2020 Hindi Test - 28
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    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार, भौतिक और अभौतिक घटक का क्या महत्व है?

    Solutions

    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार, संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं।

     

  • Question 2/10
    1 / -0

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?

    Solutions

    निम्नलिखित कथन सत्य हैं-

    • दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है।

    • दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है।

    • संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है।

     

  • Question 3/10
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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    मानव जीवन में संस्कृति निर्माण में किसकी अहम भूमिका होती है?

    Solutions

    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार, विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है।

     

  • Question 4/10
    1 / -0

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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    निम्नलिखित में से कौन से दो समांतर प्रक्रिया साझा करते हैं और परिवर्तनशील भी रहते हैं?

    Solutions

    उपरोक्त गद्यांश के अनुसार, किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

     

  • Question 5/10
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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    भारतवर्ष किस दर्शन की किस विचारधारा का अनुसरण करता है?

    Solutions

    भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है।

     

  • Question 6/10
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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    उपरोक्त गद्यांश में ‘नियमन’ शब्द का अर्थ है l

    Solutions

    उपरोक्त गद्यांश में ‘नियमन’ शब्द का अर्थ है नियम में बंधने का कार्य l

     

  • Question 7/10
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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    दार्शनिक का संधि-विच्छेद होगा l

    Solutions

    दार्शनिक का संधि विच्छेद है दर्शन + इक l संधि में पदों को मूल रूप में पृथक कर देना संधि विच्छेद है l दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं l इस मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग- अलग कर देना संधि विच्छेद है l

     

  • Question 8/10
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    निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए l

    संस्कृति शब्द की उत्पत्ति, संस्कृत शब्द से हुई है ! संस्कार का अर्थ है, मनुष्य द्वारा कुछ कार्यों का अपने जीवन में किया जाना। विभिन्न संस्कारो द्वारा मनुष्य अपने सामूहिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति करता है। इन संस्कारों से ही मनुष्य की संस्कृति निर्मित होती है। मनुष्य के सामूहिक जीवन के उद्देश्यों में भौतिक तथा अभौतिक घटक होते हैं। भौतिक घटक के अंतर्गत मनुष्य की भौतिक उपलब्धियां आती हैं जो मनुष्य के जीवन को आसान बनाते है। अभौतिक घटक के अंतर्गत सामाजिक मान्यताएं, रीतिरिवाज, साहित्य, कला, नैतिकता मूल्य, आदि आते हैं। भौतिक तथा अभौतिक घटक मनुष्य की संस्कृति का निर्माण करते हैं। संस्कृति के दोनों ही घटक दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। वस्तुतः संस्कृति और दर्शन परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते है, परिणामस्वरूप उनका विकास भी होता है, तथा परिवर्तन भी होता है ! किसी भी समाज का सांस्कृतिक विकास, तथा दर्शन का विकास समांतर प्रक्रिया है, अर्थात दोनों का विकास साथ साथ होता है। दर्शन के प्रगतिशील होने पर समाज की सांस्कृतिक अवस्था भी प्रगतिशील होती है, तथा संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक घटकों का व्यापक विकास होता है।

    दर्शन के आधार पर ही वह समाज अपने सामाजिक मूल्यों, नैतिक मापदण्डों, रीति रिवाजों, सामाजिक व्यवहारों, तथा व्यक्तिगत और सामूहिक विश्वासों का निर्धारण और नियमन करता है। साहित्य, कला, संगीत और भाषा भी दर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त करती है, ताकि वह समाज के आंतरिक सौंदर्य को व्यक्त कर सके। संस्कृति के भौतिक घटक भी दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं। मनुष्य द्वारा किए गए अविष्कार, उत्पादन प्रक्रियाएँ, तथा आर्थिक विकास का लाभ सामूहिक रूप से समाज कल्याण हेतु किए जाने की प्रेरणा दर्शन से ही प्राप्त होता है ! इस तरह दर्शन भौतिक विकास को सामूहिक मानव कल्याण हेतु आदर्शोन्मुख स्वरूप प्रदान करता है ! दर्शन समाज के भौतिक मूल्यों तथा आध्यात्मिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित करता है। संस्कृति और दर्शन एक दूसरे को इतना अधिक प्रभावित करते हैं कि उन्हें पृथक किया जाना कठिन प्रतीत होता है। दर्शन से ही संस्कृति की उत्पत्ति होती है। मनुष्य के दार्शनिक विचार , ज्ञान, तथा चिंतन के भंडार से ही संस्कृति के तत्व कला, संगीत, साहित्य, विज्ञान तथा समाज की सामूहिक जीवन शैली की उत्पत्ति होती है। समय के साथ समाज के सांस्कृतिक तत्वों में परिवर्तन होता है, तो यह देखा गया है कि इसका कारण भी दर्शन में परिवर्तन है। इस तरह कहा जा सकता है कि ‘‘दर्शन संस्कृति के इतिहास का निर्माण करता है‘‘।

    भिन्न - भिन्न दर्शन के कारण भिन्न भिन्न सामाजिक संस्कृति का निर्माण होता है। भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक प्रवृत्ति तथा पाश्चात्य दर्शन की भौतिकतावादी प्रवृत्ति, ही भारतीय तथा पाश्चात्य संस्कृति के बीच विभिन्नता का कारण है। बाम ने उचित ही कहा है कि ‘‘बिना दर्शन के कोई संस्कृति नहीं हो सकती, तथा संस्कृतियां एक दूसरे से भिन्न होती है‘‘। संस्कृति किसी राष्ट्र, अथवा समाज की दार्शनिक विचारधारा का परिणाम होता है। दार्शनिक चिंतन की सर्व समावेशी विचारधारा , सार्वभौमिकता,

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    निम्नलिखित में से कौन सा शब्द दिए गए वाक्यांश के लिए उपयुक्त है- “चारों दिशाओं में व्याप्त”

    Solutions

    “चारों दिशाओं में व्याप्त” वाक्यांश का अर्थ है- सर्वसमावेशी।

     

  • Question 9/10
    1 / -0

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्न गद्यांश को पढ़कर विकल्पात्मक प्रश्नों के उत्तर चुनिए -

    पिछले कुछ वर्षों में भारतीय समाज में तेजी से आर्थिक-सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन दिखाई पड़ रहे हैं और इसके केंद्र बिंदु नई पीढ़ी के आधुनिक भारतीय युवा है। ये पुरानी पीढ़ी की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर, साहस एवं कुशल कार्मिक है। ये रुपए को अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं और अपने जीवन में से संबंधित सभी निर्णय स्वयं लेने में विश्वास करते हैं। पुरानी पीढ़ी और नई युवा पीढ़ी में और भी कई अंतर है जो नई युवा पीढ़ी को श्रेष्ठ साबित करते हैं। यह पीढ़ी तकनीकों के प्रयोग में अत्यधिक सहज है। जबकि पुरानी पीढ़ी इस मामले में अब तक असहज दिखाई पड़ती है। नई पीढ़ी के युवा तकनीकों के प्रयोग द्वारा हर प्रकार के समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं। जबकि पुरानी पीढ़ी के लोग समस्याओं के समाधान के लिए पारम्परिक तरीकों पर भरोसा करते थे।

    नई पीढ़ी के भारतीय युवाओं ने अपने बुद्धि और क्षमता का लोहा विश्व भर में बनवाया है। आईआईटी और आईआईएम से निकले छात्रों की प्रतिभा का सम्मान सारी दुनिया करती है। तभी तो अत्यधिक ऊंचे वेतन पैकेज देकर उनको अपनी संस्थाओं में नियुक्त करती हैं। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारतीयों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया है। अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन में सॉफ्टवेयर उद्योग में कार्यरत सर्वाधिक जनसंख्या भारतीय युवाओं की है। स्वास्थ्य एवं औषधि के क्षेत्र में भी आधुनिक भारतीय युवाओं ने क्रान्ति का सूत्रपात किया है। खेलकूद में सचिन तेंदुलकर, एमएस धोनी, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल इत्यादि के नाम विश्व भर में विख्यात हैं। लारा दत्ता ( पूर्वमिस यूनिवर्स ), प्रियंका चोपड़ा (पूर्व मिस वर्ल्ड), सुष्मिता सेन (मिस यूनिवर्स), ऐश्वर्या राय (मिस वर्ल्ड) इत्यादि ने भारतीय सौन्दर्य के साथ बुद्धि के संगम का लोहा पूरी दुनिया मे मनवाया है । राजनीति में राहुल गांधी, सचिन पायलट, अनुराग ठाकुर, हनुमान बेनीवाल, अगाथा संगमा आदि भारतीय युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं।

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    गद्यांश के आधार पर अगाथा संगमा का सम्बन्ध बताया गया है।

    Solutions

    राजनीति में राहुल गांधी,सचिन पायलट,अनुराग ठाकुर,हनुमान बेनीवाल,अगाथा संगमा आदि भारतीय युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं।

     

  • Question 10/10
    1 / -0

    Directions For Questions

    निर्देश: निम्न गद्यांश को पढ़कर विकल्पात्मक प्रश्नों के उत्तर चुनिए -

    पिछले कुछ वर्षों में भारतीय समाज में तेजी से आर्थिक-सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन दिखाई पड़ रहे हैं और इसके केंद्र बिंदु नई पीढ़ी के आधुनिक भारतीय युवा है। ये पुरानी पीढ़ी की तुलना में अधिक आत्मनिर्भर, साहस एवं कुशल कार्मिक है। ये रुपए को अपना स्टेटस सिंबल मानते हैं और अपने जीवन में से संबंधित सभी निर्णय स्वयं लेने में विश्वास करते हैं। पुरानी पीढ़ी और नई युवा पीढ़ी में और भी कई अंतर है जो नई युवा पीढ़ी को श्रेष्ठ साबित करते हैं। यह पीढ़ी तकनीकों के प्रयोग में अत्यधिक सहज है। जबकि पुरानी पीढ़ी इस मामले में अब तक असहज दिखाई पड़ती है। नई पीढ़ी के युवा तकनीकों के प्रयोग द्वारा हर प्रकार के समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं। जबकि पुरानी पीढ़ी के लोग समस्याओं के समाधान के लिए पारम्परिक तरीकों पर भरोसा करते थे।

    नई पीढ़ी के भारतीय युवाओं ने अपने बुद्धि और क्षमता का लोहा विश्व भर में बनवाया है। आईआईटी और आईआईएम से निकले छात्रों की प्रतिभा का सम्मान सारी दुनिया करती है। तभी तो अत्यधिक ऊंचे वेतन पैकेज देकर उनको अपनी संस्थाओं में नियुक्त करती हैं। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारतीयों ने पूरे विश्व में अपना नाम कमाया है। अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं ब्रिटेन में सॉफ्टवेयर उद्योग में कार्यरत सर्वाधिक जनसंख्या भारतीय युवाओं की है। स्वास्थ्य एवं औषधि के क्षेत्र में भी आधुनिक भारतीय युवाओं ने क्रान्ति का सूत्रपात किया है। खेलकूद में सचिन तेंदुलकर, एमएस धोनी, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल इत्यादि के नाम विश्व भर में विख्यात हैं। लारा दत्ता ( पूर्वमिस यूनिवर्स ), प्रियंका चोपड़ा (पूर्व मिस वर्ल्ड), सुष्मिता सेन (मिस यूनिवर्स), ऐश्वर्या राय (मिस वर्ल्ड) इत्यादि ने भारतीय सौन्दर्य के साथ बुद्धि के संगम का लोहा पूरी दुनिया मे मनवाया है । राजनीति में राहुल गांधी, सचिन पायलट, अनुराग ठाकुर, हनुमान बेनीवाल, अगाथा संगमा आदि भारतीय युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं।

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    भारतीय समाज तेजी से जो परिवर्तन आ रहे हैं, उस परिवर्तन का केन्द्र - बिन्दु है।

    Solutions

    भारतीय समाज मे जो तेजी से परिवर्तन आ रहे है उसका केन्द्र- बिन्दु नई पीढ़ी के युवा है। गद्य के अनुसार भारतीय युवा आधुनिक है एवं साहसिक,कुशल कार्मिक,आत्मनिर्भर हैं।

     

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