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Sanskrit Domain Test - 7
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Sanskrit Domain Test - 7
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  • Question 1/10
    5 / -1

    वाच्यस्य नियमानुगुणम् उचितं विकल्पं चिनुत।

    _______चित्राणि दृश्यन्ते।
    Solutions

    संस्कृत व्याकरण में तीन वाच्य - 

    • कर्तृवाच्य - जिस वाक्य में कर्ता प्रधान होता है और क्रियापद कर्ता के अधीन होता है, उस वाक्य को 'कर्तृवाच्य' वाक्य कहते है। इसमें कर्ता प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण - रामः पुस्तकं पठति।
    • कर्मवाच्य - जिस वाक्य में कर्म प्रधान हो और क्रियापद कर्म के अधीन हो, वह कर्मवाच्य वाक्य होता है। इसमें कर्ता में तृतीया विभक्ति और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। उदाहरण - 'तेन ग्रन्थः पठ्यते।' यह वाक्य कर्मवाच्य होता है।
    • भाववाच्य - जब अकर्मक धातुओं से भाव प्रकट हो, तब वाक्य भाववाच्य होता है। इसमें कर्ता हमेशा तृतीया विभक्ति में क्रियापद आत्मनेपदी और प्रथम पुरुष एकवचन में रहता है। उदाहरण - बालकेन क्रीडयते।

    स्पष्टीकरण -

    • प्रस्तुत वाक्य '_______ चित्राणि दृश्यन्ते।' में 'दृश्यन्ते' इस क्रियापद में 'दृश्य-पश्य' धातु से कर्म के अधीन कर्मवाच्य में बना रूप है। अतः यह वाक्य कर्मवाच्य है।
    • कर्मवाच्य होने के कारण कर्म प्रथमा में 'चित्राणि' तथा कर्ता तृतीया विभक्ति में 'मया' होना चाहिए।

    अतः उचित पर्याय 'मया' तथा संपूर्ण वाक्य 'मया चित्राणि दृश्यन्ते' होता है।

  • Question 2/10
    5 / -1

    वाच्यस्य नियमानुगुणम् उचितं विकल्पं चिनुत

    मनः सत्येन ……………….. ।
    Solutions

    संस्कृत व्याकरण में तीन वाच्य - 

    • कर्तृवाच्य - जिस वाक्य में कर्ता प्रधान होता है और क्रियापद कर्ता के अधीन होता है, उस वाक्य को 'कर्तृवाच्य' वाक्य कहते है। इसमें कर्ता प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण - रामः पुस्तकं पठति।
    • कर्मवाच्य - जिस वाक्य में कर्म प्रधान हो और क्रियापद कर्म के अधीन हो, वह कर्मवाच्य वाक्य होता है। इसमें कर्ता में तृतीया विभक्ति और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। उदाहरण - 'तेन ग्रन्थः पठ्यते।' यह वाक्य कर्मवाच्य होता है।
    • भाववाच्य - जब अकर्मक धातुओं से भाव प्रकट हो, तब वाक्य भाववाच्य होता है। इसमें कर्ता हमेशा तृतीया विभक्ति में क्रियापद आत्मनेपदी और प्रथम पुरुष एकवचन में रहता है। उदाहरण - बालकेन क्रीडयते।

    स्पष्टीकरण -

    प्रस्तुत वाक्य 'मनः सत्येन ……………….. ।' में 'मनः' पद कर्ता है तथा वह प्रथमा विभक्ति में है। अतः यह वाक्य कर्तृवाच्य है।

    वाक्य में 'शुध्' (४ प. प.) लट्लकार का प्रयोग करना है, कर्तृवाच्य के अनुसार यहाँ 'शुध्यति' यह रूप बनता है।

    अतः उचित पर्याय 'शुध्यति' तथा संपूर्ण वाक्य 'मनः सत्येन शुध्यति' होता है।

    Confusion Points'शुध्यति' में 'य्' ४ गण का विकरण है, आत्मनेपद का नहीँ।

  • Question 3/10
    5 / -1

    वाच्यस्य नियमानुगुणम् उचितं विकल्पं चिनुत​।

    मात्रा रोटिकाः _______।
    Solutions

    प्रश्नानुवाद - वाच्य के नियम के अनुसार उचित विकल्प चुने​। मात्रा रोटिकाः _______।

    स्पष्टीकरण - नियमानुसार यहाँ पच्यन्ते क्रियापद आयेगा।

    संस्कृत व्याकरण में तीन वाच्य - 

    • कर्तृवाच्य - जिस वाक्य में कर्ता प्रधान होता है और क्रियापद कर्ता के अधीन होता है, उस वाक्य को 'कर्तृवाच्य' वाक्य कहते है। इसमें कर्ता प्रथमा विभक्ति और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण - रामः पुस्तकं पठति।
    • कर्मवाच्य - जिस वाक्य में कर्म प्रधान हो और क्रियापद कर्म के अधीन हो, वह कर्मवाच्य वाक्य होता है। इसमें कर्ता में तृतीया विभक्ति और कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। उदाहरण - 'तेन ग्रन्थः पठ्यते।' यह वाक्य कर्मवाच्य होता है।
    • भाववाच्य - जब अकर्मक धातुओं से भाव प्रकट हो, तब वाक्य भाववाच्य होता है। इसमें कर्ता हमेशा तृतीया विभक्ति में क्रियापद आत्मनेपदी और प्रथम पुरुष एकवचन में रहता है। उदाहरण - बालकेन क्रीडयते।

    स्पष्टीकरण -

    • प्रस्तुत वाक्य 'मात्रा रोटिकाः _______।' में 'मात्रा' पद कर्ता है, जो तृतीया विभक्ति में है और 'रोटिकाः' यह कर्म प्रथमा विभक्ति-बहुवचन में है। जहाँ क्रिया कर्म के अनुसार प्रथमा बहुवचन (आत्मनेपद) में होगी। यह वाक्य कर्मवाच्य है।
    • वाक्य में 'पच्' लट्लकार का प्रयोग है, कर्मवाच्य के नियम के अनुसार, कर्म के अधीन प्रथमपुरुष बहुवचन में 'पच्यन्ते' यह रूप बनता है।

     

    अतः उचित पर्याय 'पच्यन्ते' है तथा संपूर्ण वाक्य 'मात्रा रोटिकाः पच्यन्ते।' होता है।

  • Question 4/10
    5 / -1

    उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
    क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया,
    दुर्गं पथस्तत् कवयोः वदन्ति॥

    श्लोके ‘धारा’ पदस्य किं विशेषणं वर्तते?

    Solutions

    प्रश्न अनुवाद -
    उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान् निबोधत।
    क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया,
    दुर्गं पथस्तत् कवयो वदन्ति॥
    श्लोक में ‘धारा’ पद का क्या विशेषण है ?
    स्पष्टीकरण -

    • अर्थ - उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। विद्वान् मनीषी जनों का कहना है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है, जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना।
    • उक्त श्लोक कठोपनिषद् से लिया गया है।
    • यहां पर दुर्गम मार्ग की विशेषता छुरे के समान पैनी कि गयी धार (धारा) से की गयी है। 
    • श्लोक में स्पष्ट है कि ज्ञान प्राप्ति का मार्ग उसी प्रकार दुर्गम है जिस प्रकार छुरे के पैना किये गये धार पर चलना।

     

    अत: 'निशिता' विकल्प सही है।

    Additional Informationविशेषण की परिभाषा -

    • संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते है।

    विशेषण के भेद - विशेषण मुख्यतः छः प्रकार के होते है -

    1. गुणवाचक विशेषण - किसी वस्तु के गुण तथा तुलनावाचक शब्द गुणवाचक विशेषण होते है। जैसे - सुन्दरः बालकः। रम्यतरः, कृष्णः आदि।
    2. संख्यावाचक विशेषण - जैसे - एकः छात्रः। पञ्च बालिका: आदि।
    3. परिमाणवाचक विशेषण - जैसे - अल्पं जलम् क्रोशमितम् आदि।
    4. संकेतवाचक विशेषण - जो विशेषण संज्ञा की ओर संकेत करते है, वे संकेतवाचक विशेषण होते है। जैसे - सः बालकः, सा बालिका आदि।
    5. व्यक्तिवाचक विशेषण - जैसे - भारतीयः पुरुषः।
    6. विभागवाचक विशेषण - यथा - प्रत्येकं जनम्।
  • Question 5/10
    5 / -1

    ‘अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्’ अत्र विशेषण पदं किम?
    Solutions

    प्रश्नार्थ - ‘अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्' इस पद का विशेषण है-

    विशेषण-विशेष्य

    • विशेषण = संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते है।
    • विशेष्य = जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताई जाती है, उन्हें विशेष्य कहते है।
    • संस्कृत में विशेषण-विशेष्य समान लिंग-विभक्ति-विशेषण में होते है।

    वाक्य विश्लेषण

    प्रस्तुत वाक्य में ‘अयम् एव कारणं षण्णाम् ऋतूणाम्' इस वाक्य का अर्थ है, 'यही कारण है छह ऋतुओं का।'

    • इस वाक्य में विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध है।
    • 'षण्णाम्' पद 'ऋतूणाम्' के बारे में विशेष जानकारी दे रहा है की अर्थात वह संख्यावाची विशेषण है।
    अतः इस प्रकार उचित पर्याय 'षण्णाम्' शब्द है। 
  • Question 6/10
    5 / -1

    किन्तु न कदाचित् आर्यस्य निष्प्रयोजना प्रवृत्तिः।

    इति वाक्ये ‘प्रवृत्तिः’ पदस्य विशेषणपदं किम्?

    Solutions

    प्रश्न अनुवाद -
    किन्तु न कदाचित् आर्यस्य निष्प्रयोजना प्रवृत्तिः।
    इस वाक्य में ‘प्रवृत्तिः’ पद का विशेषण पद क्या है ?
    स्पष्टीकरण -

    • उक्त उक्ति का अर्थ है - किन्तु, आर्य की कोई प्रवृत्ति कभी प्रयोजन के बिना नहीं होती।
    • यहां पर ‘प्रवृत्तिः’ पद का विशेषण पद 'निष्प्रयोजना' है क्योकिं 'निष्प्रयोजना' पद ‘प्रवृत्तिः’ पद की विशेषता बतला रहा है 
    • उक्ति में भी स्पष्ट है कि निष्प्रयोजना प्रवृत्तिः अर्थात् प्रवृत्ति कभी प्रयोजन के बिना नहीं होती। 
    • अत: 'निष्प्रयोजना' विकल्प सही है।

    Additional Information विशेषण की परिभाषा -

    • संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते है।

    विशेषण के भेद - विशेषण मुख्यतः छः प्रकार के होते है -

    1. गुणवाचक विशेषण - किसी वस्तु के गुण तथा तुलनावाचक शब्द गुणवाचक विशेषण होते है। जैसे - सुन्दरः बालकः। रम्यतरः, कृष्णः आदि।
    2. संख्यावाचक विशेषण - जैसे - एकः छात्रः। पञ्च बालिका: आदि।
    3. परिमाणवाचक विशेषण - जैसे - अल्पं जलम् क्रोशमितम् आदि।
    4. संकेतवाचक विशेषण - जो विशेषण संज्ञा की ओर संकेत करते है, वे संकेतवाचक विशेषण होते है। जैसे - सः बालकः, सा बालिका आदि।
    5. व्यक्तिवाचक विशेषण - जैसे - भारतीयः पुरुषः।
    6. विभागवाचक विशेषण - यथा - प्रत्येकं जनम्।
  • Question 7/10
    5 / -1

    'व्याघ्रः' शब्दस्य पर्यायपदं किम्?
    Solutions

    प्रश्नार्थ - 'व्याघ्रः' पद का समानार्थी है

    स्पष्टीकरण - 'व्याघ्रः' के लिए संस्कृत में उल्लेख है- 'शार्दूलद्वीपिनौ व्याघ्रे' 

    अर्थात् शार्दूल द्विपिन् और व्याघ्र यह पद बाघ के लिए दिए गये है।

    इस तरह स्पष्ट है कि यहाँ व्याघ्रः शब्द शार्दूलः का पर्याय है।

    Confusion Points

    मृगेन्द्रः - सिंह के लिए -सिंहो मृगेन्द्रः पञ्चास्यो हर्यक्षः केसरी हरिः।' इस उक्ति में मृगेंद्र और 'पञ्चास्य' अर्थात् 'पंचानन' कहा गया है।

  • Question 8/10
    5 / -1

    'विहस्य' इति पदस्य समानार्थकं लिखत-

    Solutions

    प्रश्नार्थ - 'विहस्य' इस पद का समानार्थक पद लिखें- 

    स्पष्टीकरण - 

    • 'विहस्य' इस पद का अर्थ 'हँसकर' है।
    • दिये गये पर्याय पदों में 'हसित्वा' का अर्थ 'हँसकर' होता है। अतः वह उचित पर्याय है।
    • दोनों पद 'हस्' धातु से बने है जिनका अर्थ होता है - हँसना। और यहाँ दोनों पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्यय है।
    • विहस्य में ल्यप् प्रत्यय है और हसित्वा में क्त्वा प्रत्यय है।

    Additional Information

    • विहाय - घुम कर
    • विहगः - पक्षी
    • हसति - हँसना
  • Question 9/10
    5 / -1

    'उपकारः' पदस्य विलोमं वर्तते-
    Solutions

    प्रश्नार्थ - 'उपकारः' का विलोम शब्द है-

    स्पष्टीकरण - 'उपकारः' का हिंदी अर्थ उपकार ही होता है।

    'उपकार' के लिए विलोम 'अपकारः' होता है।

    अतः उचित पर्याय अपकारः होता है।

  • Question 10/10
    5 / -1

    'हानिः' पदस्य विलोमं अस्ति-
    Solutions

    प्रश्नार्थ - 'हानिः' का विलोम शब्द है-

    स्पष्टीकरण - हानि का हिंदी अर्थ भी हानि ही होता है। अर्थात किसी का नुकसान होना।

    हानि के लिए विलोम लाभ होना है। अतः उचित पर्याय लाभः होता है।

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